Mountaineer Arunima Sinha
अपनी
कमजोरी को ही ताकत बना लेना ऐसा मिशाल कोई अरुणिमा सिन्हा से ही सीख सकता
है वो कहते है न की जब हमारे इरादे बुलन्द हो तो एवेरेस्ट सरीखा चट्टान भी
हमारे लक्ष्य को डिगा नही सकता ऐसा ही कारनामा अरुणिमा सिन्हा ने भी कर
दिया जो की अपनी जिंदगी से हार मानने वालो के लिए भी एक सबक है
क्या आप
कल्पना कर सकते है जिस महिला को लूटने के इरादे से आधी रात में चलती ट्रेन
से लूटने का प्रयास किया जाय वो उस महिला से जीत न पाने की वजह से चलती
ट्रेन से बाहर फेक दिया जाय इतना ही नही फेकने के बाद पटरियों में अपने पैर
जो महिला गवा दे क्या ऐसी महिला एवेरेस्ट को भी फतह कर लेगी लेगी ऐसा
कारनामा एवेरेस्ट से भी ऊँचा हौसला रखने वाली महिला अरुणिमा सिन्हा ने सच
कर दिखाया है
अरुणिमा
सिन्हा का जन्म सन 1988 में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर
जिले के शहजादपुर इलाके के पंडाटोला मुह्हले में हुआ था बचपन से वालीवाल
में रूचि रखने वाली अरुणिमा सिन्हा भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान
दिलाना इनका मुख्य ध्येय था
जैसे जैसे
समय बीतता गया अरुणिमा सिन्हा अपनी पढ़ाई को पूरी करते हुए अरुणिमा सिन्हा
की पहचान राष्ट्रिय स्तर पर वालीवाल खिलाडी के रूप में होने लगी . इसी
कड़ी में वे अपने Carreer में आगे बढ़ती गयी लेकिन जिंदगी में तमाम
परेशानीयो का सामना करना पड़ा लेकिन अरुणिमा सिन्हा हर मौके को अपनी सफलता
के रूप में भुनाया
वो कहते है
न दोस्तों हर किसी के जीवन में कभी कभी ऐसा भी वक्त आता है जो इंसान के
जीवन को बदलकर रख देता है ऐसा ही कुछ अरुणिमा सिन्हा के साथ भी हुआ जो
अरुणिमा सिन्हा 11 अप्रैल 2011 की वो काली रात कभी नही भूल सकती
अरुणिमा
सिन्हा 11 अप्रैल 2011 को पद्मावती एक्सप्रेस (Padmavati Express) से लखनऊ
से दिल्ली जा रही थी रात के लगभग एक बजे कुछ शातिर अपराधी ट्रैन के डिब्बो
में दाखिल हुए और अरुणिमा सिन्हा को अकेला देखकर उनके गले की चैन छिनने का
प्रयास करने लगे जिसका विरोध अरुणिमा सिन्हा ने किया तो उन शातिर चोरो ने
अरुणिमा सिन्हा को चलती हुई ट्रैन बरेली के पास बाहर फेक दिया जिसकी वजह से
अरुणिमा सिन्हा का बाया पैर पटरियों के बीच में आ जाने से कट गया पूरी रात
अरुणिमा सिन्हा कटे हुए पैर के साथ दर्द से चीखती चिल्लाती रही लगभग 40 –
50 ट्रैन गुजरने के बाद पूरी तरह से अरुणिमा सिन्हा अपने जीवन की आस खो
चुकी थी लेकिन शायद अरुणिमा सिन्हा के जीवन के किस्मत को कुछ और ही मंजूर
था
फिर लोगो
को इस घटना के पता चलने के बाद इन्हें नई दिल्ली (New Delhi) के AIIMS में
भर्ती कराया गया जहा अरुणिमा सिन्हा अपने जिंदगी और मौत से लगभग चार महीने
तक लड़ती रही और जिंदगी और मौत के जंग में अरुणिमा सिन्हा की जीत हुई और फिर
अरुणिमा सिन्हा के बाये पैर को कृत्रिम पैर के सहारे जोड़ दिया गया
अरुणिमा
सिन्हा के इस हालत को देखकर डॉक्टर भी हार मान चुके थे और उन्हें आराम करने
की सलाह दे रहे थे जबकि परिवार वाले और रिस्तेदारो के नजर में अब अरुणिमा
सिन्हा कमजोर और विंकलांग हो चुकी थी लेकिन अरुणिमा सिन्हा ने अपने हौसलो में कोई कमी नही आने दी और किसी के आगे खुद को बेबस और लाचार घोसित नही करना चाहती थी
जब अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha)
पूरी तरह से ठीक हो गयी तो उन्होंने तुरन्त अपने हौसलो को एक नई उड़ान देने
के लिए दुनिया के सबसे उची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने का मन ठान लिया
जरा सोचिये
जो शरीर से हष्टपुष्ट होता है उसके भी पैर एवेरेस्ट फतह के नाम से डगमगाने
लगते है ऐसे में अगर कोई भी अरुणिमा सिन्हा के इस फैसले को सुनता तो दातो
तले ऊँगली दबा लेता.
लेकिन
अरुणिमा सिन्हा के हौसला माउंट एवरेस्ट से भी ऊँचा था और अपनी इसी इच्छा को
पूरी करने के लिए वे एवेरेस्ट फतह करने वाली प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री
पाल /Bachendri Pal से मिलने जमशेदपुर जा पहुची
अरुणिमा
सिन्हा के इस हालत को देखते हुए पहले बछेन्द्री पाल ने उन्हें आराम करने की
सलाह दी लेकिन अरुणिमा सिन्हा के बुलन्द हौसलो के वे नतमस्तक हो गयी और
बोली तुमने तो अपने हौसलो तो एवरेस्ट से भी उचे है बस इसे अपनी तुम्हे अपनी
फतह की तारीख लिखनी है
इसके बाद
अरुणिमा सिन्हा बछेंद्री पाल की निगरानी में लेह से नेपाल, लद्दाख में
पर्वतारोहण के गुर सीखी फिर पूरी तरह से तैयार होने के बाद अरुणिमा सिन्हा
ने एक नए इतिहास लिखने की तैयारी में 31 मार्च 2013 को मांउट एवेरेस्ट चढाई
की शुरुआत कर दी और फिर 52 दिनों की दुश्वार चढ़ाई और ठंड से कपा देने वाली
बर्फ को पार करते हुए एक नए उचाई की इबारत लिखते हुए अरुणिमा सिन्हा ने 21
मई 2013 को माउंट एवेरेस्ट फतह कर लिया और इतिहास में प्रथम विकलांग महिला
एवेरस्ट फतह करने वाली महिला / Handicaped First Woman to Climb Mount
Everst बन गयी
जब अरुणिमा
सिन्हा अपने लक्ष्य की तरह आगे बढ़ते जाती तो रास्तो में अनेक प्रकार के
कठिनाईयो का सामना करना पड़ता तो इनके साथ के स्टाफ बोलते अब रुक जाओ यहाँ
तक आ गयी हो वही एक रिकॉर्ड है लेकिन अरुणिमा सिन्हा कहा मानने वाली थी वे
कहती की किस्मत तो सबको अपने पैर देता है लेकिन मेरे पास तो लोहे के पैर है
जो इन चट्टानों को आसानी से पार कर लेगी इसी बुलन्द हौसलो से अरुणिमा
सिन्हा अपने लक्ष्य में विजयी हुई और दुनिया के सबसे उची चोटी अपर अपने
विजय फतह का पताका फहराया. जिनके बुलन्द हौसलो के आगे बड़े से बड़े दिग्गज भी
अरुणिमा सिन्हा को सलाम करते है
अरुणिमा
सिन्हा भी चाहती तो औरो की तरह अपनी कमजोरी को अपनी बेबसी और लाचारी मानकर
चुपचाप बैठ जाती और जिंदगी में कभी आगे नही बढ़ पाती और पूरा जीवन दुसरो के
सहारे गुजरना पड़ता लेकिन एवरेस्ट से भी ऊँचा हौसला रखने वाली अरुणिमा
सिन्हा ने अपने जीवन में कभी हार नही मानी, मुश्किल हालात सबके जीवन में
आते है लेकिन विजयी वही होता है जिनके इरादे बुलन्द होते है ऐसी सोच रखने
वाली अरुणिमा सिन्हा जैसे ही लोग हमारे देश भारत की शान है जो हर मुश्किलो
का सामना करते हुए विजयपथ की ओर बढ़ते जाते है और हम सभी के जीवन में अँधेरे
में भी प्रकाश की आशा दिखाते है
दोस्तों हम
सभी के जीवन में कभी न कभी मुश्किल हालात जरूर आते है लेकिन हमे कभी भी
किसी भी परिस्थिति में अपने हौसलो को कम नही होने देना चाहिए और जो लोग इन
परिस्थितियों का सामना डटककर करते है वही लोग विजयपथ पार अग्रसर होते है
आप सभी को अरुणिमा सिन्हा की प्रेरित करने वाली कहानी कैसा लगा प्लीज हमे जरूर बताये
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